इस किनारे पर हम थे उस किनारे पर वो मिलने की आस थी , पर दुर था किनारा एक टक देख , लिये थी मिलने की आस आज लहरें भी थी शांत मिलन को देखने के लिये जमाने की थी नजर हमारे ओर मिलन की आस मे चल पडे किनारे से लहरों की ओर .....
चल पडे कदम अपनी मन्जिल की ओर कल उलझे थे कदम अपनी परेशानियो मे आज फिर चल पडे कदम अपनी मन्जिल की ओर असमन्जस मे थे अपने कदम बढने से पहले फिर सोचा चलो बढाये कदम मन्जिल की ओर