Monday, December 21, 2009

किनारे



इस किनारे पर हम थे उस किनारे पर वो
मिलने की आस थी , पर दुर था किनारा
एक टक देख , लिये थी मिलने की आस
आज लहरें भी थी शांत मिलन को देखने के लिये
जमाने की थी नजर हमारे ओर
मिलन की आस मे चल पडे किनारे से लहरों की ओर .....

7 comments:

  1. इस पीपे के पुल का दर्शन बहुत गहरा बैठता है मेरे भाई ! एक बार लिखा था इस पर, मौका मिले तो पढ़ना ।
    चित्र तो उस वक्त गूगल से उड़ाया था, तुम तो थे ही नहीं न कैमरे के साथ ।

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  2. bahut sundar or khas hai photo.dekhte he nazar vahi apalak rah jaye ,shresth hai kala aapki/

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  3. waah!
    bahut hi man-bhaati tasveer hai ..aur saath likhi panktiyan bhi!

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