धुधंली शाम मे बैठे चार जन तन से थे निराश , मन से भी निराश उम्र ने भी छोड दिया था साथ कभी उनकी भी थी आन-बान कभी समय दौड्ता था साथ आज समय ने भी छोड दिया साथ कभी आगे-पीछे थी लोगो की फौज आज के केवल चार जन बैठे ....
बहुत भावपूर्ण रचना है।बधाई। सही बात है जब उमर के आखिरी पड़ाव पर इंसान पहुँचते है तो उसे यह त्रास्दी सहनी पड़ती है...उसके अपने ही उस से किनारा करने लगते हैं,,.....
बहुत भावपूर्ण रचना है।बधाई।
ReplyDeleteसही बात है जब उमर के आखिरी पड़ाव पर इंसान पहुँचते है तो उसे यह त्रास्दी सहनी पड़ती है...उसके अपने ही उस से किनारा करने लगते हैं,,.....
bahut achha deeraj ji aasha hai aage aapki rachanatmakata aur bhi rang layegi.
ReplyDeleteछोटी सी रचना के लिए भी टिप्पणी देने में शब्द जैसे चुक रहे हैं। बहुत ही भावप्रवण रचना, बधाई।
ReplyDeleteयह फोटो जम गयी । लगे रहो ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना है आपकी. और यह जानकार भी बेहद ख़ुशी हुई की आप एक फोटोग्राफर भी हैं आपसे हमें बहुत कुछ सिखने को मिलेगा.
ReplyDeleteआपका धन्यवाद
bhai waah !
ReplyDeletebahut khoob !
चार को साथ रखा है
ReplyDeleteयह हैं अच्छे विचार।
चित्र भी शानदार।।
सुंदर चित्र और सचाई को बताती हुई कविता ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर तस्वीर के साथ आपने भावपूर्ण रचना लिखा है जो बहुत ही अच्छा लगा !
ReplyDeleteयह फोटो जम गयी । लगे रहो ।
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