Monday, November 9, 2009

अंधाधुंध




अंधाधुंध हो रहे है साफ

कास-कूस, झाड-फूस

हो रहा महसूस, प्रधान जी है खुश


जनता हो रही है नाखुश

जहाँ हो रहा है शोषण

जहाँ केवल मिलता है दोष

फिर भी वहाँ है जाते लोग

मिलता है काम केवल अपनो को

वह है नाम नरेगा...

5 comments:

  1. नरेगा के चित्रों की एक श्रृंखला शुरु करते तो अच्छा होता । तुम्हारे पास तो बहुत कुछ है इस तरह का ।

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  2. वाह बढ़िया लगा! इस शानदार और उम्दा रचना के लिए बधाई!

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  3. सटीक अभिव्यक्ति है और तस्वीर तो सुन्दर होती ही है आशीर्वाद्

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  4. जहाँ केवल मिलता है दोष

    फिर भी वहाँ है जाते लोग

    मिलता है काम केवल अपनो को


    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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