
आँगन छुटा, गलियां छुटी
छुटे सब संग - साथ
हम से हुयी थी क्या खता
हम हुए बेगाने अपने शहर मे और
शहर ने हमें काफिर बना डाला
ग़मों से दूर तक रिश्ता न था
हम बसा रहे थे अपनी दुनिया
अमन वालों ने ही जला डाली दुनिया
लुट डाली हया और आँखे हमारी
शहर ने हमें काफिर बना डाला
हुयी आंखे सूनी , सुना हुआ गोद
सूनी है आज गलियां और सड़क
अमन वाले बैठे देख रहे थे तमाशा
मना रहे है जश्न आज लाशो पर
शहर ने हमें काफिर बना डाला
उन्हें होश नही कि जलेगी उनकी भी दुनिया
जिसने हमें काफिर बना डाला .........................