Monday, June 15, 2009

पीली धूप मे चटक हरापन



धूप तीखी थी
सूख गया मै भी
पानी की प्रत्याशा
खीच गयी कहाँ कहाँ?

देखा यह हरापन
मन हरा हो गया
यहाँ पानी था कहाँ ?
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नोट - यह चित्र हिमांशु जी के पौधों की क्यारी से लिया है |प्यास ने पंहुचा दिया था वहां |

2 comments:

  1. Lajwab!...Nice Pic. & nice poem.
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    मेरे ब्लॉग "शब्द-शिखर" पर भी एक नजर डालें तथा पढें 'ईव-टीजिंग और ड्रेस कोड'' एवं अपनी राय दें.

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  2. बहुत बढ़िया!

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