बालपन गुजारा माँ की गोद में
अपनी थी मौज बचपन मे ,
नादानीयो का पिटारा था बचपन
हर तरफ थी मौज ही मौज
न किसी से गीला था
न किसी से शिकवा - शिकायत
अपनी थी मौज बचपन मे ,
दिन बीतता था दोस्तो के संग
माँ की डाट भी उड जाती थी मौज मे
यारो के संग दोपहर मे बगीचे मे खेलना
अपनी थी मौज बचपन मे ।
बहुत सुन्दर!
ReplyDeletebachapan aisa hi hota hai ........sundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता हम तो बूढे हो कर भी फिर से बचपन मे जाना चाहते हैं सब से सुन्दर होत है बचपन आपने जहाँ गीला लिखा है शायद गिल आना था उसकी जगह बधाई इस पोस्ट के लिये
ReplyDeleteआपने बहुत ही सुंदर कविता लिखा है! मैं तो अपने बचपन के दिनों में लौट गई!
ReplyDeleteShaandaar.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सच में - अपनी थी मौज बचपन में । खो गये न तुम भी !
ReplyDeleteन किसी से गीला था
ReplyDeleteन किसी से शिकवा - शिकायत
अपनी थी मौज बचपन मे ,
सुंदर....