Friday, July 31, 2009

बचपन



बालपन गुजारा माँ की गोद में
अपनी थी मौज बचपन मे ,
नादानीयो का पिटारा था बचपन
हर तरफ थी मौज ही मौज
न किसी से गीला था
न किसी से शिकवा - शिकायत
अपनी थी मौज बचपन मे ,
दिन बीतता था दोस्तो के संग
माँ की डाट भी उड जाती थी मौज मे
यारो के संग दोपहर मे बगीचे मे खेलना
अपनी थी मौज बचपन मे ।

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर!

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  2. bachapan aisa hi hota hai ........sundar

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  3. बहुत सुन्दर कविता हम तो बूढे हो कर भी फिर से बचपन मे जाना चाहते हैं सब से सुन्दर होत है बचपन आपने जहाँ गीला लिखा है शायद गिल आना था उसकी जगह बधाई इस पोस्ट के लिये

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  4. आपने बहुत ही सुंदर कविता लिखा है! मैं तो अपने बचपन के दिनों में लौट गई!

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  5. सच में - अपनी थी मौज बचपन में । खो गये न तुम भी !

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  6. न किसी से गीला था
    न किसी से शिकवा - शिकायत
    अपनी थी मौज बचपन मे ,

    सुंदर....

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