सुबह से हुयी
आज
शाम
खामोश
किनारों दे दी आवाज
साहिलों ने भी आज दिल्लगी की हमसे
हमने भी सोचा
चलो आज हम भी दिल्लगी करे साहिलों से
साहिलों ने भी हमें लहरों से मिलाया
लहरों की भी कहानी अजीब है
उसका अपनापन भी है
बेगानापन भी
है
बेवजह लोग उसे कतराते है
आज फैला डाली अपनी झोली
उसने डाले बंद सीप के मोती
खामोशकिनारों दे दी आवाज आज ............
खूब गहरे अर्थों वाले चित्र प्रस्तुत कर रहे हो भई !
ReplyDeleteखूबसूरत चित्र ।
शाम के उजाले को दर्शाती सुन्दर छवि और कविता।
ReplyDeleteआज फैला डाली अपनी झोली
ReplyDeleteउसने डाले बंद सीप के मोती
खामोश
किनारों दे दी आवाज आज ..........
-बहुत उम्दा!!
लहरों की भी कहानी अजीब है
ReplyDeleteउसका अपनापन भी है
बेगानापन भी है
लहरों की तरह लहराती सुन्दर कविता...चित्र से मेल करती हुयी
बहुत सुंदर रचना !!
ReplyDeleteलहरों की भी कहानी अजीब है
ReplyDeleteउसका अपनापन भी है
बेगानापन भी है
बेवजह लोग उसे कतराते है
bahut sahi baat,under rachana
वाह! सुंदर !! मेरी "क्षितिज" को ले आये आप। बहोत बढिया।
ReplyDeleteबहुत बहुत ही सुन्दर भाव.........
ReplyDeletelovely photographs and nice expression too
ReplyDeleteप्यारी रचना...
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