Thursday, August 27, 2009

शाम का उजाला



सुबह से हुयी
आज शाम
खामोश
किनारों दे दी आवाज
साहिलों ने भी आज दिल्लगी की हमसे
हमने भी सोचा
चलो आज हम भी दिल्लगी करे साहिलों से
साहिलों ने भी हमें लहरों से मिलाया
लहरों की भी कहानी अजीब है
उसका अपनापन भी है
बेगानापन भी है
बेवजह लोग उसे कतराते है
आज फैला डाली अपनी झोली
उसने डाले बंद सीप के मोती
खामोश
किनारों दे दी आवाज आज ............

10 comments:

  1. खूब गहरे अर्थों वाले चित्र प्रस्तुत कर रहे हो भई !
    खूबसूरत चित्र ।

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  2. शाम के उजाले को दर्शाती सुन्दर छवि और कविता।

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  3. आज फैला डाली अपनी झोली
    उसने डाले बंद सीप के मोती
    खामोश
    किनारों दे दी आवाज आज ..........

    -बहुत उम्दा!!

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  4. लहरों की भी कहानी अजीब है
    उसका अपनापन भी है
    बेगानापन भी है
    लहरों की तरह लहराती सुन्दर कविता...चित्र से मेल करती हुयी

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  5. लहरों की भी कहानी अजीब है
    उसका अपनापन भी है
    बेगानापन भी है
    बेवजह लोग उसे कतराते है
    bahut sahi baat,under rachana

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  6. वाह! सुंदर !! मेरी "क्षितिज" को ले आये आप। बहोत बढिया।

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  7. बहुत बहुत ही सुन्दर भाव.........

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  8. lovely photographs and nice expression too

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