Thursday, August 6, 2009

राहगीर


चला था मै साथ उनके राह में
राह ही लम्बी निकली
कुछ दुर चल कर
वह राह मे ही बिछड गये
खामोश राह मे मै
कुछ दुर चला
उनकी यादों के साथ
मै चला पर कुछ दुर ही चला
और तन ने साथ छोड दिया

10 comments:

  1. अरे यार, बैठा तो है कोई साइकिल पर ।
    और इतनी सुन्दर फोटो के साथ इतने संवेदनशील होने की क्या जरूरत ? मस्त रहो ।

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  2. हिमाँशू जी सही कह रहे हैं । वैसे फोतो कमाल की होती है हमेशा ही बहुत बहुत आशीर्वाद और अगली पोस्ट सकारात्मक हो

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  3. अत्यन्त सुंदर कविता और फोटो भी बहुत अच्छी है!

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  4. नार्मल ही रहिए!अधिक सम्वेदनशील बनने से दिक्कत होती है,दिल हर कदम पर टूटता रह्ता है और टूटे दिल से हसने मे भी दिक्कत होती है..वैसे यह दॄश्य तो आपके शब्दो का साथ नही देता कहते है कि दिल मे दुख हो तो बाहर भी दु:ख ही दिखता है,मुझे भी आपकी मनोदशा कुछ ऐसी ही लगती है.......

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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    'विज्ञान' पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!

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  6. सुंदर कविता और फोटो

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