चला था मै राह मे लिए सपनों को गठरी मै बुनता गया ताना अपनी मंजिल का मंजिल तो मिला पर ठिकाना नही मै खोजता रहा ठिकाना पर मिला तो वो भी नीले गगन की छाव मे |
जिस खबर का इन्तजार कई दिन से कर रही थी लगता है ये उसका जवाब है मैं तो सोच रही थी कि ठिकाना मिल गया कई दिन से नज़र नहीं आये थे शुभकामनायें अभी तो सफर शुरू हुया है चलते रहो मंज़िल जरूर मिलेगी आशीर्वाद्
वाह क्या बात है! बहुत सुंदर पंक्तियाँ! नीले गगन की छाव में ..अद्भूत रचना! चित्र बहत सुंदर और सठिक है!
ReplyDeleteवापस आए प्यारे ! मन की बात भी कह गये । ठिकाना इससे बड़ा कहाँ ? चित्र खूबसूरत है ।
ReplyDeleteसुन्दर । एक बार फिर स्वागत है।
ReplyDeleteक्या बात कही है ......अतिसुन्दर रचना ......बहुत ही खुब .....सुन्दर
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ReplyDeleteमनभावन रचना
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मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
जिस खबर का इन्तजार कई दिन से कर रही थी लगता है ये उसका जवाब है मैं तो सोच रही थी कि ठिकाना मिल गया कई दिन से नज़र नहीं आये थे शुभकामनायें अभी तो सफर शुरू हुया है चलते रहो मंज़िल जरूर मिलेगी आशीर्वाद्
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र और गीत..
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