Friday, August 21, 2009

मंजिल


चला था मै
राह मे
लिए सपनों को गठरी
मै बुनता गया
ताना
अपनी मंजिल का
मंजिल तो मिला
पर ठिकाना नही
मै खोजता रहा ठिकाना
पर मिला तो वो भी
नीले गगन की छाव मे |

8 comments:

  1. वाह क्या बात है! बहुत सुंदर पंक्तियाँ! नीले गगन की छाव में ..अद्भूत रचना! चित्र बहत सुंदर और सठिक है!

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  2. वापस आए प्यारे ! मन की बात भी कह गये । ठिकाना इससे बड़ा कहाँ ? चित्र खूबसूरत है ।

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  3. सुन्दर । एक बार फिर स्वागत है।

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  4. क्या बात कही है ......अतिसुन्दर रचना ......बहुत ही खुब .....सुन्दर

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  6. जिस खबर का इन्तजार कई दिन से कर रही थी लगता है ये उसका जवाब है मैं तो सोच रही थी कि ठिकाना मिल गया कई दिन से नज़र नहीं आये थे शुभकामनायें अभी तो सफर शुरू हुया है चलते रहो मंज़िल जरूर मिलेगी आशीर्वाद्

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  7. बहुत सुन्दर चित्र और गीत..

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