
आज मुलाकात हुयी लहरों से
उसने हमसे पुछा
हमारी पहचान क्या है आप से
हमारा रिश्ता क्या है आप से
तो मन मे उठी हलचल
सच मे हमारा क्या रिश्ता है
हम तो रोज आते है किनारों पर
हमने तो ना सोचा था
क्या रिश्ता है आप से
आज मन की डोर हो गई कमजोर
हम रिश्तो का नाम न दे पा रहे है
हम तो आये थे किनारे मौज मानाने
उन्होंने ने तो रिश्तो की डोर बना ली
अब तो रिश्तो की डोर थामने से डर लगता है
कही ये रिश्ते मैले न हो जाय
उन्होंने ने तो रिश्ता बनाया था दिल का
और हम कहते है की रिश्ता क्या है
आज फिर लहरों ने पुछा
क्या रिश्ता है हमारा
बेहतर।कहीं से कोई कमी नहीं।
ReplyDeleteजबरदस्त भाई..अच्छा लिख रहे है!!
ReplyDeleteइन रिश्तों को कोई नाम ना दो ..!!
ReplyDeleteधीरज जी बहुत सुन्दर आज तो दिल की फोटो ग्राफी कर दी बडिया रचना है बधाई
ReplyDeleteRishte ko bakhoobi bayaan kiya hai.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
behtarin dhiraj bhai ,badhai ho is sundar rachana ke liye
ReplyDelete-----eksacchai {AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com