Sunday, August 23, 2009

अकेला मन


मन था आज अकेला
चला आज दूर तक
मन को बाधे
क्यो कि
आज मन था
बहका बहका
मन तोड़ चला
सारे बंधन
उड़ने लगा आज
मन
छुने की तमन्ना थी
आज सारा आकाश
मन तोड़ चला
सारे बंधन

7 comments:

  1. इतना उदास नहीं रहते।अच्छी अभिव्यक्ति।

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  2. भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!

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  3. किसी का मन पर वश नहीं मन की अपनी रीति।
    घृणा बैर मन की उपज मन से होती प्रीति।।

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  4. चित्र सुन्दर है - बस इतना ही कह देता हूँ ।

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  5. सुन्दर-
    बहुत आभार.
    श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभ कामनाएं-
    आपका शुभ हो, मंगल हो, कल्याण हो |

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  6. मन
    छुने की तमन्ना थी
    आज सारा आकाश
    मन तोड़ चला
    सारे बंधन
    सुन्दर

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